बीरबल ने पलटी बाज़ी


एक दिन की बात है. अकबर राज-दरबार की कार्यवाही समाप्त कर दरबारियों को पिछली रात देखा अपना सपना सुना रहे थे, “अंधेरी रात थी. मैं और बीरबल एक-दूसरे की ओर चले आ रहे हैं. अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ने के कारण हम दोनों एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े. लेकिन ख़ुदा का शुक्र है कि मैं खीर के तालाब में गिरा और आप जानते हैं कि बीरबल कहाँ गिरा?”



“नाली में” बीरबल से जलने वाले दरबारियों ने एक स्वर में कहा और ठहाके लगाने लगे. अकबर भी उनके साथ हो लिए. उस दिन अकबर भी बीरबल के मज़े लेना चाहते थे और अपनी बातों से उसे निरुत्तर कर देना चाहते है.



“क्या हुआ?” अकबर ने कौतुहलवश

“आप खीर के तालाब से बाहर निकले और मैं नाली से बाहर निकला. ख़ुद को साफ़ करने के लिए हमने पानी की तलाश की. लेकिन हमें कहीं भी पानी नहीं मिला. तब जानते हैं, हमने क्या किया?”



“क्या किया?” अकबर का कौतूहल बढ़ता जा रहा था.



“एक-दूसरे को साफ़ करने के लिए हम एक-दूसरे को चाटने लगे.” बीरबल ने मुस्कुराते बोला.



यह सुनना था कि शर्म के मारे अकबर का चेहरा लाल हो गया. बीरबल ने बाज़ी पलट दी थी. उस दिन उन्होंने कसम खाई कि अब कभी भी बातों में बीरबल से नहीं 

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