सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी

 एक गाँव में एक किसान अपनी पत्नि के साथ रहता था. उनका एक छोटा सा खेत था, जहाँ वे दिन भर परिश्रम किया करते थे. किंतु कठोर परिश्रम के उपरांत भी कृषि से प्राप्त आमदनी उनके जीवन-यापन हेतु पर्याप्त नहीं थी और वे निर्धनता का जीवन व्यतीत करने हेतु विवश थे.



एक दिन किसान बाज़ार से कुछ मुर्गियाँ ख़रीद लाया. उसकी योजना मुर्गियों के अंडे विक्रय कर अतिरिक्त धन उपार्जन था. अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने घर के आंगन में एक छोटा सा दड़बा निर्मित किया और मुर्गियों को उसमें रख दिया.



भोर होने पर जब उन्होंने दड़बे में झांककर देखा, तो आश्चर्यचकित रह गए. वहाँ अन्य अंडों के साथ एक सोने का अंडा भी पड़ा हुआ था. किसान उस सोने के अंडे को अच्छी कीमत पर जौहरी के पास बेच आया.



अगले दिन फिर उन्होंने दड़बे में सोने का अंडा पाया. किसान और उसकी पत्नि समझ गए कि उनके द्वारा पाली जा रही मुर्गियों में से एक मुर्गी अद्भुत है. वह सोने का अंडा देती है. एक रात पहरेदारी कर वे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पहचान गए. उसके बाद से वे उसका ख़ास ख्याल रखने लगे. उस मुर्गी से उन्हें रोज़ सोने का अंडा मिलने लगा. उन अंडों को बेचकर किसान कुछ ही महिनों में धनवान हो गया.


किसान अपने जीवन से संतुष्ट था. किंतु उसकी पत्नि लोभी प्रवृत्ति की थी. एक दिन वह किसान से बोली, “आखिर कब तक हम रोज़ एक ही सोने का अंडा प्राप्त करते रहेंगे. क्यों न हम मुर्गी के पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लें? इस तरह हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जायेंगे कि हमारी सात पुश्तें आराम का जीवन व्यतीत करेंगी.”


पत्नि की बात सुनकर किसान के मन में भी लोभ घर कर गया. उसने मुर्गी को मारकर उसके पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लेने का मन बना लिया. वह बाज़ार गया और वहाँ से एक बड़ा चाकू ख़रीद लाया.



फिर रात में अपनी पत्नि के साथ वह मुर्गियों के दड़बे में गया और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पकड़कर उसका पेट चीर दिया. किंतु मुर्गी भीतर से सामान्य मुर्गियों की तरह ही थी. उसके पेट में सोने के अंडे नहीं थे. किसान और उसकी पत्नि अपनी गलती पर पछताने लगे. अधिक सोने के अंडों के लोभ में पड़कर वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे.



सीख


लालच बुरी बला है.

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