बीरबल बादशाह अकबर का मुख्य सलाहकार था. दरबार में कई ऐसे दरबारी थे, जो यह पद पाने की लालसा रखते थे. इसलिए सदा बीरबल को नीचा दिखाने या अपनी अक्लमंदी साबित करने का प्रयास किया करते थे. एक दिन कुछ दरबारी अकबर के पास पहुँचे और कहने लगे, “जहाँपनाह! हममें से कई दरबारी बीरबल से कहीं ज्यादा काबिल हैं. लेकिन आपने उसे अपना मुख्य सलाहकार बना लिया है. हम चाहते हैं कि आप हमें भी अपना मुख्य सलाहकार बनने का मौका दें.” अकबर बोले, “ठीक है. मैं तुम लोगों की परीक्षा लूंगा. जो उस परीक्षा में सफ़ल होगा, उसे मैं बीरबल की जगह अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर लूंगा.” सभी दरबारी ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए. सभी दरबारी ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए. कपड़े की लंबाई मात्र कमर से लेकर पैर तक की थी. दरबारियों ने बहुत प्रयास किया, लेकिन अकबर को उस कपड़े से सिर से लेकर पैर तक ढकने में असफ़ल रहे. आख़िरकार, सबने हार मान ली. सबके हार मानने के बाद अकबर ने बीरबल पूछा, “बीरबल! क्या तुम यह करके दिखा सकते हो?” बीरबल सामने आया और अकबर के पास आकर खड़ा हो गया गया. फिर बोला, “जहाँपनाह! आपसे मेरा निवेदन है कि आप अपने घुटने थोड़ा ऊपर की ओर मोड़ लें.” अ...
एक बार तुर्किस्तान के शहंशाह ने बादशाह अकबर (Akbar) की बुद्धि की परीक्षा लेने के मंसूबे से एक पैगाम भेजा. पैगाम कुछ इस तरह था – “अकबरशाह! सुना है भारत में एक ऐसा पेड़ है, जिसके पत्तों को खाने से उम्र बढ़ जाती है. हमारी गुज़ारिश है कि हमें उस पेड़ के कुछ पत्ते ज़रूर भिजवायें.” यह पैगाम लेकर तुर्किस्तान के शहंशाह का दूत और कुछ सिपाही अकबर के पास पहुँचे थे. पैगाम पढ़कर अकबर सोच में पड़ गए. फिर उन्होंने बीरबल को बुलाकर सलाह-मशवरा किया. अंत में बीरबल की सलाह मानकर अकबर ने तुर्किस्तान से आये दूत को सिपाहियों सहित एक सुदृढ़ किले में कैद करवा दिया. वहाँ उनके खाने-पीने का यथोचित्त प्रबंध किया गया. किले में बंद दूत और सिपाही चिंतित थे. उनकी समझ के बाहर था कि आखिर उनका दोष है क्या? कुछ दिन व्यतीत होने के उपरांत बीरबल (Birbal) को साथ लेकर अकबर उनसे मिलने पहुँचे. उन्हें देख दूत और सिपाहियों में उम्मीद जागी कि शायद अब उन्हें मुक्त कर दिया जायेगा. किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ. अकबर उनसे बोले, “तुम्हारे शहंशाह ने हमसे जिस चीज़ की गुज़ारिश की है. मैं वह तब ही दे पाऊंगा, जब इस किले की १-२ ईंटें गिर जायेंगी. तब तक...
एक दिन की बात है. अकबर राज-दरबार की कार्यवाही समाप्त कर दरबारियों को पिछली रात देखा अपना सपना सुना रहे थे, “अंधेरी रात थी. मैं और बीरबल एक-दूसरे की ओर चले आ रहे हैं. अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ने के कारण हम दोनों एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े. लेकिन ख़ुदा का शुक्र है कि मैं खीर के तालाब में गिरा और आप जानते हैं कि बीरबल कहाँ गिरा?” “नाली में” बीरबल से जलने वाले दरबारियों ने एक स्वर में कहा और ठहाके लगाने लगे. अकबर भी उनके साथ हो लिए. उस दिन अकबर भी बीरबल के मज़े लेना चाहते थे और अपनी बातों से उसे निरुत्तर कर देना चाहते है. “क्या हुआ?” अकबर ने कौतुहलवश “आप खीर के तालाब से बाहर निकले और मैं नाली से बाहर निकला. ख़ुद को साफ़ करने के लिए हमने पानी की तलाश की. लेकिन हमें कहीं भी पानी नहीं मिला. तब जानते हैं, हमने क्या किया?” “क्या किया?” अकबर का कौतूहल बढ़ता जा रहा था. “एक-दूसरे को साफ़ करने के लिए हम एक-दूसरे को चाटने लगे.” बीरबल ने मुस्कुराते बोला. यह सुनना था कि शर्म के मारे अकबर का चेहरा लाल हो गया. बीरबल ने बाज़ी पलट दी थी. उस दिन उन्होंने कसम खाई कि अब कभी भी बातों में बीरबल से नहीं
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