एक दिन बीरबल अपने मित्र के साथ भ्रमण के लिए निकला. दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे. इसलिए बातचीत करते हुए न समय का पता चला, न ही दूरी का. चलते-चलते दोनों बहुत दूर निकल आये. उनके मार्ग में एक नदी पड़ी. उन्हें नदी पार कर दूसरे छोर पर जाना था. नदी पार करने का एक ही माध्यम था. उस पर बना हुआ एक पुराना पुल. पुल बहुत संकरा था. एक बार में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा उसे पार किया जा सकता था. बरसात के दिन थे, तो पुल पर काई जमी हुई थी. इसलिए उसे संभलकर पार करने की आवश्यकता थी. पहले बीरबल पुल पार करने के लिए बढ़ा और सावधानी से धीरे-धीरे चलते हुए सही-सलामत नदी के दूसरे छोर पर पहुँच गया. अब मित्र की बारी थी. वह भी पूरी सावधानी से पुल पार करने लगा. लेकिन पूरी सावधानी बरतने के बाद भी नदी के दूसरे छोर तक पहुँचने के कुछ दूर पहले उसका संतुलन बिगड़ गया और वह नदी में जा गिरा. मित्र को नदी में गिरते देख बीरबल फुर्ती से अपना हाथ बढ़ाया और बोला, “मित्र, जल्दी से मेरा हाथ पकड़ लो. मैं तुम्हें बाहर खींच लूंगा.” मित्र ने वैसा ही किया. उसने बीरबल का हाथ पकड़ लिया और बीरबल उसे किनारे की ओर खींचने लगा. बीरबल पूरा ज़ोर लग...
बीरबल बादशाह अकबर का मुख्य सलाहकार था. दरबार में कई ऐसे दरबारी थे, जो यह पद पाने की लालसा रखते थे. इसलिए सदा बीरबल को नीचा दिखाने या अपनी अक्लमंदी साबित करने का प्रयास किया करते थे. एक दिन कुछ दरबारी अकबर के पास पहुँचे और कहने लगे, “जहाँपनाह! हममें से कई दरबारी बीरबल से कहीं ज्यादा काबिल हैं. लेकिन आपने उसे अपना मुख्य सलाहकार बना लिया है. हम चाहते हैं कि आप हमें भी अपना मुख्य सलाहकार बनने का मौका दें.” अकबर बोले, “ठीक है. मैं तुम लोगों की परीक्षा लूंगा. जो उस परीक्षा में सफ़ल होगा, उसे मैं बीरबल की जगह अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर लूंगा.” सभी दरबारी ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए. सभी दरबारी ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए. कपड़े की लंबाई मात्र कमर से लेकर पैर तक की थी. दरबारियों ने बहुत प्रयास किया, लेकिन अकबर को उस कपड़े से सिर से लेकर पैर तक ढकने में असफ़ल रहे. आख़िरकार, सबने हार मान ली. सबके हार मानने के बाद अकबर ने बीरबल पूछा, “बीरबल! क्या तुम यह करके दिखा सकते हो?” बीरबल सामने आया और अकबर के पास आकर खड़ा हो गया गया. फिर बोला, “जहाँपनाह! आपसे मेरा निवेदन है कि आप अपने घुटने थोड़ा ऊपर की ओर मोड़ लें.” अ...
एक बार तुर्किस्तान के शहंशाह ने बादशाह अकबर (Akbar) की बुद्धि की परीक्षा लेने के मंसूबे से एक पैगाम भेजा. पैगाम कुछ इस तरह था – “अकबरशाह! सुना है भारत में एक ऐसा पेड़ है, जिसके पत्तों को खाने से उम्र बढ़ जाती है. हमारी गुज़ारिश है कि हमें उस पेड़ के कुछ पत्ते ज़रूर भिजवायें.” यह पैगाम लेकर तुर्किस्तान के शहंशाह का दूत और कुछ सिपाही अकबर के पास पहुँचे थे. पैगाम पढ़कर अकबर सोच में पड़ गए. फिर उन्होंने बीरबल को बुलाकर सलाह-मशवरा किया. अंत में बीरबल की सलाह मानकर अकबर ने तुर्किस्तान से आये दूत को सिपाहियों सहित एक सुदृढ़ किले में कैद करवा दिया. वहाँ उनके खाने-पीने का यथोचित्त प्रबंध किया गया. किले में बंद दूत और सिपाही चिंतित थे. उनकी समझ के बाहर था कि आखिर उनका दोष है क्या? कुछ दिन व्यतीत होने के उपरांत बीरबल (Birbal) को साथ लेकर अकबर उनसे मिलने पहुँचे. उन्हें देख दूत और सिपाहियों में उम्मीद जागी कि शायद अब उन्हें मुक्त कर दिया जायेगा. किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ. अकबर उनसे बोले, “तुम्हारे शहंशाह ने हमसे जिस चीज़ की गुज़ारिश की है. मैं वह तब ही दे पाऊंगा, जब इस किले की १-२ ईंटें गिर जायेंगी. तब तक...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें